गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

               प्रतिदिन अखबार पढो और दिक्कत में पड़ो, सोचते रहो देश दुनिया की व्यवस्था के सुधार के लिए। लेकिन सुधर कहाँ रक्खे है, जनता चाहे जितने आन्दोलन करें। जनता चाहे तख्ता पलट कर दे लेकिन ये केचुली शासक उसी में रम जाते है। आज हम राजनीती की गन्दी जगह का स्वरुप बन चुके मुकाम पर खड़े है जहाँ जातिवाद पूरी तरह से हावी है। अपराध रोके नहीं रुक रहे है। लोग केवल जुगाड़ ढूंढ रहे है, और अपने कर्तव्य से विमुख होकर केवल पैसे बनाने की ही बात सोच रहे है। ये पूरा का पूरा पेज ही महिला के प्रति अपराधों से भरा पड़ा है। ज़रा सोचिये कोई महिला इतनी आसानी से अपने सम्मान को नीलम करने को तैयार होती है, नहीं ना तो फिर ऐसे निर्णयों कहाँ न्याय मिल पायेगा जहाँ अपराध छिपाने के लिए दमंग्पन सामने आता हो। देखे जागरण के इस समाचार को----
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